गर्भनाल (Umbilical Cord) करती है रोगों का निदान भी



गोपाल राजू का मूल लेख
सिविल लाइंस
रूड़की – २४७ ६६७ (उत्तराखंड)




    सुश्रुत संहिता के अनुसार किसी भी बच्चे के शरीर में जितनी शिराएं हैं वह सब उनकी नाभी से अवश्य जुड़ी हुई हैं। बच्चे की गर्भनाल, नाल अर्थात् अम्बिलिकल कॉर्ड जिस समय माँ के पेट से अलग की जाती है, एक मान्यता के अनुसार यह ज्योतिष शास्त्र में बच्चे के जन्म का समय माना जाता है।
    अनेक वरिष्ठ चिकित्सकों ने एक मत से यह स्वीकार किया है कि भविष्य में होने वाले ब्लड कैंसर, थैलेसीमिया, डायबिटीज, लिवर और दिल आदि से सम्बन्धित कोई 75 रोगों का निदान इस गर्भनाल से सम्भव है। शिशु के जन्म के समय सामान्यतः लगभग 15-20 इंच लम्बी गर्भनाल में कोई 60 एम.एल खून होता है। बच्चे के स्टेमसैल को सुरक्षित रखकर इसका उपयोग उस समय किया जाता है जब बच्चा बड़ा होने के बाद किसी रोग अथवा दुर्घटना का शिकार हो जाता है।
मैडिकल सांइस में यही स्टेमसैल इंजेक्ट करके मृत हो चुकी कोशिकाओं की जगह इम्प्लांट कर दिए जाते हैं और बीमारी का निदान करने में तद्नुसार सहयक और उपयोगी सिद्ध होते हैं। स्टेम सैल वस्तुतः ऐसी कोशिकाएं हैं जिनमें शरीर के किसी भी अंग को कोशिका के रूप में विकसित करने की क्षमता होती है | यह दूसरी कोशिकाओं में भी बदल सकती हैं | शरीर की किसी भी मरम्मत के लिए भी इनका उपयोग किया जा सकता है |

    आयुर्वेद के ग्रंथों में भी गर्भनाल के औषधीय गुणों की बात की पुष्टि की है। अनेक ऐसे उदाहरण और घरेलु उपचार की मान्यताएं सामने आई हैं जहाँ रोग होने पर बच्चे की गर्भनाल खिसकर उसको चटाने से रोग ठीक हो गए।
    गर्भनाल के विलक्षण रोग निरोधक गुणों को देखते हुए इधर इनकों सुरक्षित रखने का चलन भी धीरे-धीरे बढ़ रहा है। ब्लड की तरह अम्बिलिकल कॉर्डब्लड बैंक भी बन रहे हैं जहाँ कुछ निर्धारित धनराशि देकर उसको लम्बे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
अंबिकल कॉर्ड को तंत्र जगत में शकुन के रूप में देखा जाता है। इससे अनेकों तांत्रिक क्रियाएं भी की जाती हैं। टोटकों के रूप में अनेक जनजातियों और ग्रामीण क्षेत्रों में इसका प्रायः चलन देखने को मिल जाएगा।
    घर में जन्मे पहले पुत्र से अनेकों धनप्रदायक और अन्य सम्पन्नता तथा सफलता प्रदायक प्रयोग किए जाते हैं। इनका वर्णन मैंने अपनी ''सरलतम धनदायक उपाय'' नामक पुस्तक में भी वर्षों पूर्व किया था। इन उपायों में प्रभाव दिखे या न दिखें लेकिन इनसे अनहित की तो लेशमात्र भी सम्भावना नहीं होती।
    बच्चे के पैदा होते समय उसकी गर्भनाल माँ के शरीर से काटकर अलग की जाती है। इन नाल को आप किसी लाल रंग के कपड़े में लपेटकर सुरक्षित रख लें। बच्चे के छठ के किसी एक वस्त्र में लपेटकर इसकी पोटली बना लें और घर में कहीं भी सुरक्षित रख लें। जब किसी अत्यन्त आवश्यक कार्य के लिए घर से निकलना हो तो यह पोटली अपने साथ ले जाएं। आपका कार्य निश्चित रूप से सफल होगा। अपने स्वयं के व्यक्तिगत जीवन में सात बार इस उपाय को करके मैंने आशातीत सफलता प्राप्त की है। एक बार तो चमत्कार ही रहा इस विलक्षण पोटली का। केद्र सरकार में वैज्ञानिक पद पर एक  (राजपत्रित) अधिकारी के रूप में मेरी प्रोन्नति होना एक विचित्र ही बात सिद्ध हुई। निर्णायक दल के कुछ सदस्य मेरे बिल्कुल ही विपरीत थे। अकस्मात् अन्तिम समय में उनका निर्णय बदल गया और वह मेरे पक्ष में हो गए। उस पल को मैं आज तक नहीं भूला हूँ। कैसी विपरीत परिस्थिति थी और किस प्रकार से एक दैविक चमत्कार से मेरे पक्ष में हो गयी।
   जो व्यक्ति इस पोटली को अपने इष्ट सिद्धि में लिए साथ ले जाएं, उस दिन विशेष रूप से वह किसी भी अनुचित कार्य, तामसिक खानपान तथा व्यर्थ ही बोलने से सर्वथा बचें। कहीं भी किसी एकान्त, वीराने में, नदी, श्मशान, वृक्ष के नीचे अथवा अन्य किसी पवित्र स्थल आदि  के समीप लधु अथवा दीर्घ शंका हेतु न जाएं। घर लौटकर पोटली पुनः यथा स्थान रख दें। इसका उपयोग जीवन में किन्हीं अत्यन्त आवश्यक इष्ट सिद्धि के लिए ही करें। लोभवश, व्यर्थ में बार-बार अथवा पोटली की परीक्षा के निमित्र इसका उपयोग कदापि न करें। जब कभी लगे कि आपको इस पोटली की अब आवश्यकता नहीं हैं तो इसको किसी पवित्र नदी में क्षमा-याचना सहित विसर्जित कर दें।
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