Time of Marriage - विवाह की सम्भावित अवधि


 
                                                गोपाल राजू (वैज्ञानिक)
(राजपत्रित अधिकारी) अ.प्रा.
30, सिविल लाईन्स
रूड़की 247667 (उ.ख.)


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    विवाह काल की सम्भावित अवधि की गणनाएं अनेक विधाओं द्वारा ज्योतिष मर्मज्ञ अपनी-अपनी तरह से कर रहे हैं। फलादेश कितने सटीक बैठ रहे हैं, यहॉ एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है? स्पष्ट है कि एक विवाह विशेष की गणना के लिए विधियॉ भी अनेक प्रकार की होंगी। गणना के लिए कौन सी विधि अपनाएं, यहॉ भी बहुत बड़ा एक प्रश्न चिन्ह है? ज्योतिष जगत में सामान्यतः प्रचलित कुछ योग यहॉ प्रस्तुत हैं। पाठक मनन करें कि वह स्वयं कौन सी विधि विवाह की सम्भावित अवधि के लिए अपना रहे हैं। परिणाम में एक, दो नहीं बल्कि अनेक संभावित समय विवाह काल के लिए निकलेंगे।
क्या इतने अधिक समयों से फलादेश में भ्रम उत्पन्न नहीं होगा? अब कौन सी विधि पाठक अपनाएं और कौन सी छोड़ें यह सब निर्भर करेगा अपने-अपने बुद्धि-विवेक पर।
जातक पारिजात
  सप्तम भाव की उस दशा-मुक्ति में विवाह सम्पन्न होता है जो शुक्र से युक्त हो।
  द्वतीय भाव गत ग्रह की दशा-मुक्ति में विवाह होता है।
  सप्तम भाव से युत ग्रह की दशा-मुक्ति में विवाह होता है।
  सप्तम भाव गत ग्रह की दशा-मुक्ति में विवाह योग बनता है।
वृहत्पाराशर होरा शास्त्रम
  सप्तमेश शुभ ग्रह की राशि में हो, शुक्र अपनी उच्च अथवा अपनी ही राशि में हो तो आठवें अथवा नवें वर्ष में विवाह हो जाता है।
  सप्तम भाव में सूर्य हो, सप्तमेश शुक्र से युत हो तो सातवें अथवा बारहवें वर्ष में विवाह होता है।
  दूसरे भाव में शुक्र तथा सप्तमेश एकादश भाव में स्थित हो तो सातवें अथवा बारहवे वर्ष में विवाह होता है।
  लग्न अथवा केंद्र में शुक्र हो। लग्नेश शुक्र की राशि में हो तो बारहवे वर्ष में विवाह होता है।
  केंद्र में शुक्र हो, उससे सप्तम राशि में शनि स्थित हो बारहवें अथवा उन्नीसवें वर्ष में विवाह होता है।
  चंद्र से सातवें भाव में शुक्र हो। उससे सप्तम भाव में शनि हो तो अठारहवें वर्ष में विवाह होता है।
  द्वतीयेश लाभ स्थान में तथा लग्नेश दशम भाव में हो तो पंद्रहवें वर्ष में विवाह होता है।
  धनेश लाभ भाव में अथवा लाभेश धन भाव में हो तो तेरहवें वर्ष में विवाह होता है।
  अष्टम से सातवें शुक्र हो और सप्तमेश भोमयुक्त हो तो बाईसवें अथवा सत्ताईसवें वर्ष में विवाह होता है।
  सप्तम भाव के नवांश में लग्नेश हो। सप्तमेश बारहवें भाव में हो तो तेईसवें अथवा छब्बीसवें वर्ष में विवाह होता है।
फलदीपिका
  लग्नेश जिस राशि या नवांश में हो-उससे त्रिकोंण राशि में जब गोचरवश शुक्र अथवा सप्तमेश आता है, तब विवाह होता है।
  जो ग्रह लग्न से सप्तम हो, जो ग्रह सप्तम भाव को देखता हो, सप्तमेश-इन तीनों की जब दशा हो और लग्नेश गोचर वश सप्तम भाव में आए तब विवाह योग बनता है।
  जिस राशि में सप्तमेश हो उस राशि का स्वामी तथा जिस नवांश में सप्तमेश हो उसका स्वामी-इन दोनों में तथा शुक्र और चंद्र इन दोनों में कौन बलवान है? जब उस बलवान ग्रह की दशा अथवा अंतर्दशा हो और सप्तमेश जिस राशि या नवांश में हो-उससे त्रिकोंण राशि में गोचरवश गुरु आ जाए तो विवाह का योग बनता है।
कुण्डली दर्पण
  लग्नेश और सप्तमेश की स्पष्ट राश्यादि के योग तुल्य राशि में जब गोचरवश गुरु आता है, तब विवाह होता है।
  शुक्र अथवा चंद्र में जो बली हो तथा जो दशा पहले आती हो, उसकी महादशा और गुरु के अंतर्काल में विवाह होता है।
  दश्मेश की महादशा और अष्टमेश के अंतर्काल में विवाह योग बनता है।
  सप्तमेश की महादशा में तथा सप्तम भाव स्थित ग्रह के अंतर में विवाह योग बनता है।
  शुक्र युक्त सप्तमेश की दशा-भुक्ति में विवाह होता है।
  सप्तमेश और शुक्र के ग्रह में जब चंद्र तथा गुरु हो तथा उसके केंद्र में गोचर वश गुरु आ जाए तो विवाह के योग बनते हैं।
ब्वेउपब ।चचतवंबी वद क्मसपदमंजपदह स्वदह स्पमि  
   शिवाजी भटटाचार्य की लिखी इस पुस्तक में विवाह होने की संभावित अवधि के सूत्र बहुत ही सुंदर तथा सरल रुप से दिए गए हैं।
  राहु अंशयादि- (गुरु अंशादि-लग्न अंशादि) = विवाह समय
त्रुटि + 30 अंश
इन अंशादि पर राहु अथवा केतु गोचर वश आ जाते हैं तब विवाह का समय होता है।
  जब गुरु सप्तम भाव पर, सप्तमेश पर अथवा उससे त्रिकोंण में गोचर वश आ जाते हैं, तब विवाह होता है।
  कुण्डली में जब गुरु शुक्र पर गोचर वश आता है अथवा उस पर दृष्टि रखता है तब विवाह होता है।
  लग्नेश जिस राशि या नवांश में हो उससे त्रिकोंण राशि में जब शुक्र अथवा सप्तमेश गोचर से आता है, तब विवाह योग बनता है।
कृष्णामूर्ति पद्यति
   कृष्णामूर्ति पद्यति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह अन्य विधाओं की तरह अगर-मगर से सर्वथा अलग है। इसमें फलादेश के नियम सरल सुगम और पूर्णतः सुनिश्चित हैं। विवाह की अवधि निकालने के लिए जन्म पत्री अथवा प्रश्न कुण्डली में 2, 7 तथा 11वें भाव के कारक ग्रह निकाले जाते हैं। इनके संयुक्त दशा-अंतर्दशा काल में जब अनुकूल गोचर भी ग्रहों का होता है, तब व्यक्ति का विवाह होता है।
ज्योतिष विज्ञान निर्झर
   विवाह योग वर्ष में महादशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशा, योगिनी आदि की अनुकूलता अनिवार्य होती है, लेकिन अलग-अलग लग्न के विवाह के वर्ष निर्धारित किए जाते हैं। इन विवाह वषरें में जब सारे समीकरण अनुकूल बन जाते हैं तो विवाह अवश्य हो जाता है।
   मेष लग्न की कन्या के विवाह वर्ष 17, 18, 22, 26, 29 होते हैं।
   वृष लग्न का 13, 15, 19, 21, 24, 26, 29 एवं 35 वां वर्ष विवाह कारक होता है।
   मिथुन लग्न का 12, 15, 18, 21, 24, 27, 30 वां वर्ष,
   कर्क लग्न का 14, 15, 17, 18, 21, 23, 25 वें वर्ष में,
   सिंह लग्न की कन्या का 13, 18, 20, 22, 25, 27, एवं 31 वें वर्ष में,
   कन्या लग्न का 18, 21, 22, 24, 26, 28 वें वर्ष में,
   तुला लग्न का 12, 16, 17, 19, 22, 23, 25, एवं 29 वें वर्ष में,
   वृश्चिक लग्न का 15, 18, 21, 23, 24, 27, 32 वें वर्ष में,
   धनु लग्न का 16, 18, 19, 22, 23, 27 वें वर्ष में,
   मकर लग्न का 16, 19, 21, 22, 23, 26, 28 वें वर्ष में,
   कुंभ का 13, 17, 18, 21, 22, 24, 27, 28, 34 वें वर्ष में,
   मीन लग्न का 14, 16, 18, 21, 24, 25, 27, 28, 31 वें वर्ष में विवाह होता है।
   इनमें भी मेष के 18, 22, वृष के 19, 21, मिथुन के 18, 21, कर्क के 21, 23, सिंह के 20, 22, कन्या के 21, 22, तुला के 17, 22, वृश्चिक के 21, 23, धनु के 19, 23, मकर के 21, 22, कुंभ के 21, 22, मीन के 21, 24 वें वर्ष में प्रबल विवाह योग होता है।
   उपरोक्त विवाह योग वर्ष लग्न एवं चंद्रमा में जो बलवान हो उसी को आधार मान कर बताना चाहिए।
गोपाल राजू
   जीवन के लम्बे अनुभव में मैंने यह निष्कर्ष निकाला है कि विवाह काल निर्धारण में लग्न, सप्तम भाव गुरु और शुक्र की भूमिका विशेष रुप से महत्वपूर्ण होती है।
  लग्न कुण्डली में देखिए कि लग्नेश किस राशि अथवा किसके नवांश में स्थित है। इनसे अथवा इनसे त्रिकोंणगत राशियों में जब-जब शुक्र गोचर वश भ्रमण करता है, तब-तब विवाह की संभावनाए बनती हैं। ग्रह और राशियों के अंश परस्पर जितने अधिक पास होंगे, संभावनाएं उतनी ही अधिक प्रबल होंगी।
  सप्तम अथवा सप्तमेश कुण्डली में गोचर वश गुरु जब शुक्र पर आता है, अथवा उससे दृष्टि संबंध रखता है अथवा उनसे त्रिकोंण राशियों में आता है तो विवाह की प्रबल संभावनाएं बनतीं है।
  सबसे सरल सुगम और अधिकांशतः सटीक फलादेश कृष्णामूर्ति पद्यति से माना जा सकता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह यदि, किन्तु, परंतु आदि भ्रामक शब्दों से सर्वथा अलग-थलग है। इसमें भी प्रश्न कुण्डली को तुलनात्मक रुप से अधिक विशुद्ध माना जा सकता है।

   सार यह है कि इस पर जितनी अधिक चर्चा करेंगे, जितने मूल जातक ग्रंथों को टटोलेंगे तो उतने ही भ्रम के मकड़ जाल में उलझते जाएंगे। बौद्धिकता इसी में है कि अपने-अपने बुद्धि-विवेक और अनुभव से सार गर्भित तथ्य तलाशें और देश, परिस्थिति, व्यक्ति विशेष और काल के अनुसार उनका अनुसरण करें तभी विवाह की संभावित अवधि तक पहुंचा जा सकता है।

                                                 
गोपाल राजू (वैज्ञानिक)
(राजपत्रित अधिकारी) अ.प्रा.
रूड़की 247667 (उ.ख.)
फोन : (01332) 274370



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