भगवन्नाम रटन में ही परम आनंद है









    



भगवन्नाम रटन में ही परम आनंदहै


जब समस्त क्रम-उपक्रम आदि लौकिक उपाय निष्फल होने लगते हैं और हम अपने आप को दुर्बल, दीन-हीन, अनाथ, विवश, निराक्षित और असहाय अनुभव करने लगते हैं तो उस समय श्री भगवन्नाम ही अंततः एक मात्र सहारा दिखाई देने लगता है। विपरीत बन गयी या बन रही उन परिस्थितियों में सौभाग्य से हमारी जिह्वा पर यदि श्री भगवन्नाम आ जाता है तब तो हमें जैसे डूबते को तिनके का सहारा मिल जाता है अन्यथा दैहिक और 

 
भौतिक आपदाओं से सामान्यतः जीवन त्रस्त ही बना रहता है। यह सब तब ही संभव होता है जब नाम रटन का सतत् अभ्यास हम अपने दैनिक जीवन में करते रहते हैं। यह सरल नहीं है क्योंकि मानसिकता ऐसी है और यही सोच बनी रहती है कि नाम लेने का अभी समय नहीं आया है और जब समय आता है तब अभ्यास की कमी के कारण और अधिकांशतः शरीर की इंद्रियों के विघटन के कारण नाम जीह्वा पर नहीं आ पाता। इसलिए नाम रटने का सतत अभ्यास करते रहना चाहिए ताकि जब शरीर असहाय होकर अभ्यास करने योग्य न रहे तब पूर्व का संचित अभ्यास काम आ सके।

श्री भगवन्नाम रटन का पुण्य मात्र इस जीवन में ही नहीं बल्कि जीवन के अन्त और उसके बाद भी तदन्तर जन्म-जन्मांतरों तक बना रहता है और प्रारब्ध तथा पुरुषार्थानुसार फलीभूत होता है। श्रीमद् भागवत गीता से तथा अन्य अनेक प्रमाणित धार्मिक ग्रंथों में प्राण-प्रयाण के समय विभिन्न नाम जप की महिमा का गुणगान लिखा है। जैसेॐ एक ब्रह्म है। जो इस नाम का जप और प्रभु का निरन्तर स्मरण करते हुए देह का त्याग करता है, वह परमगति को प्राप्त होता है।गोस्वामी तुलसी दास आदि परम संतों ने भी इस नाम को नामी से बड़ा कहा है। उन्होंने कहा है ‘‘नाम जपत मंगल दिसि दसहूं।’’ सदियों पूर्व त्रिकालज्ञ महर्षियों तथा ऋषियों-मुनियों ने अपनी ऋतम्भरा प्रज्ञा से नाम जप द्वारा शब्द के स्फोट सिद्धांत का तथ्य उजागर कर दिया था। नाम रुपी शब्द के उच्चारण से एक विशेष प्रकार का वातावरण उत्पन्न होता है जो नाम जपकर्ता को दैहिक, भौतिक और आध्यात्मिक सुख और उपलब्धियां दिलवाने में पूर्णतया सक्षम सिद्ध होता है। 

नाम जप वस्तुतः एक अध्यात्मिक प्रक्रिया है। एक तार्किक और वैज्ञानिक तथ्य है। इसका हमारे दैहिक, भौतिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों पर विशेष प्रभाव पड़ता है। इससे मनोबल दृढ़ होता है। विचारों में विवेकशीलता आती है। बुद्धि निर्मल व पवित्र बनती है। लिंग पुराण में लिखा है - जपकर्ता का कभी भी अनिष्ट नहीं होता। यक्ष, पिशाच, राक्षस आदि अरिष्ट कभी पास नहीं फटकते। नाम जप से जन्म-जन्मान्तरों के पाप नष्ट होते हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

गीता में लिखा है कि जप साधक का भयंकर भय से त्राण करता है। मनुस्मृति में लिखा हैजपकर्ता का कभी पतन नहीं होता।जप से अंतः करण में एक हलचल सी होती है। अंतर्मन में सदगुणों का विकास होने लगता है। सतत् जप से जपकर्ता अंधकार से प्रकाश, मृत्यु से अमरत्व, निराशा से आशा, सीमित से असीमित, शिथिल से दृढ़ता, नर्क से स्वर्ग, शूद्रता से श्रेष्ठता ओर बढ़ने लगता है।

     आज के विज्ञान प्रधान भौतिक युग में भी एक मत से स्वीकार कर लिया गया है कि नाम रुपी शब्द आदि का उच्चारण एक निश्चित लय में करने पर विशिष्ट ध्वनि कंपनईथरद्वारा वातावरण में उत्पन्न होते हैं। यह कंपन धीरे-धीरे शरीर की विभिन्न कोशिकाओं पर प्रभाव डालते हैं। सार-सत यह है कि नाम से मंत्र बनकर योजनाबद्ध श्रंखला ही वस्तुतः शरीर पर शुभाशुभ फल प्रभाव का कारण है।

    परन्तु नाम जप का अनुकूल प्रभाव तब ही फलीभूत होता है जब पल-प्रतिपल भंवरे की गुन-गुन की तरह यह रटन-गुनन द्वारा हृदय में अन्दर तक पैठ जाए और आत्मा का परम आत्मा से एकीकार होने लगे। नाम अथवा मंत्र जप एक भावात्मक प्रक्रिया है। हमारे भाव अविभाव बनकर ईश्वर का सानिध्य पाने के लिए जब व्याकुल होने लगते हैं और नाम, मंत्र, स्तोत्र, चौपाई, श्लोक आदि रुप में सतत् रटन करने लगते हैं, तब प्रभु की कृपा हमसे कहॉ दूर रह जाती है। यह निश्चित है कि नामोपासना जिस भाव से की जा रही है उसी के अनुरुप फलीभूत होने लगती है। सकाम अथवा निष्काम भाव वाले दोनों ही साधक इनसे संतुष्टि और परम आनन्द पाते हैं।

विभिन्न कार्यों की सिद्धि, पाप से निवृत्ति, क्लेश, बन्धनों से मुक्ति, संतान सुख, धनधान्य आदि सुखों के लिए शास्त्रों में विभिन्न देवी-देवताओं के नाम सुनिश्चित किए गए हैं। किस नाम रटन से क्या-क्या लाभ मिलता है इसका संक्षिप्त विवरण यहॉ प्रस्तुत है - 

  कलियुग के समस्त शारीरिक, वाचिक और मानसिक पापों से मुक्ति पाने के लिए गोविन्द नाम का कीर्तन करते रहना चाहिए।

  जिस प्रकार से सूर्योदय होते ही अंधकार समाप्त हो जाता है तथा जल के स्पर्श से अग्नि शांत हो जाती है उसी प्रकार श्री हरि नाम का कीर्तन, मनन, रटन करने से सम्पूर्ण पाप शांत हो जाते हैं।

  संसार में यद्यपि पराक, चन्द्रायण, तप्त, कृच्छ आदि अनेकों प्रकार के प्रायश्चित हैं। कलयुग में माधव अर्थात् गोविन्द नाम स्मरण करते रहने से समस्त पापों का प्रायश्चित हो जाता है।

  जीवन के संस्कार, नित्य प्रति की सामान्य बातों में भगवान का नाम लेना निश्चय ही जीवन में सुख-समृद्धि तथा मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है। दवा लेते हुए विष्णु का नाम, खाते-पीते समय जनार्दन का नाम, सोते समय पद्मनाभ का, विवाह संस्कार के समय प्रजापति का, शत्रु का सामना करते समय चक्रधर का, यात्रा में प्रस्थान के समय अथवा घर से बाहर निकलने के समय त्रिविक्रम का, शरीरान्त के समय नारायण नाम का जप करना बहुत ही शुभ सिद्ध होता है। प्रियजनों से भेंट होने पर श्रीधर का, बुरे सपनों के दुष्परिणामों को दूर करने के लिए गोविन्द का, विपत्ति के समय मधुसूदन का, वन अथवा वीराने में सुरक्षा के लिए नृसिंह का, अग्नि काण्ड होने पर जलशायी भगवान का नाम स्मरण करना चाहिए। जल में विहार करते समय अथवा यात्रा करते समय वराह का, पहाड़ पर दुर्गम चढ़ाई करते समय रघुनंदन का, कहीं जाते समय वामन का और समस्त कार्यो में श्री गणेश करने के लिए माधव का नाम रटना चाहिए।

  क्लेश निवारण के लिए विशोक का, बंधन मुक्ति के लिए दामोदर का, उत्पातों से शांति के लिए श्रीश अर्थात् श्री पति नामों का रटन करना चाहिए।

  संतान सुख के लिए जगत्पति अर्थात् जगदीश अथवा जगन्नाथ का स्मरण करना चाहिए।

  धनधान्य की प्राप्ति के लिए तथा आयुष्य की कामना के लिए अनंत, अच्युत और गोविन्द नामों का उच्चारण करना चाहिए। 








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गोपाल राजू (वैज्ञानिक)

.प्र. राजपत्रित अधिकारी



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